हठ योग

हठ का शाब्दिक अर्थ हठपूर्वक किसी कार्य को करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है-

हकारेणोच्यते सूर्यष्ठकार चन्द्र उच्यते।

सूर्या चन्द्रमसो र्योगाद्धठयोगोऽभिधीयते॥

ह का अर्थ सूर्य तथा ठ का अर्थ चन्द्र बताया गया है।

सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठयोग है।

शरीर में कई हजार नाड़ियाँ है उनमें तीन प्रमुख नाड़ियों का वर्णन है, वे इस प्रकार हैं-

  • सूर्यनाड़ी अर्थात पिंगला जो दाहिने स्वर का प्रतीक है।
  • चन्द्रनाड़ी अर्थात इड़ा जो बायें स्वर का प्रतीक है।
  • इन दोनों के बीच तीसरी नाड़ी सुषुम्ना है।

इस प्रकार हठयोग वह क्रिया है जिसमें पिंगला और इड़ा नाड़ी के सहारे प्राण को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कराकर ब्रहमरन्ध्र में समाधिस्थ किया जाता है।

हठ प्रदीपिका में हठयोग के चार अंगों का वर्णन है-

  • आसन,
  • प्राणायाम,
  • मुद्रा
  • बन्ध

घेरण्डसंहिता में सात अंग-

  1. षटकर्म,
  2. आसन,
  3. मुद्रा
  4. बन्ध,
  5. प्राणायाम,
  6. ध्यान,
  7. समाधि

योगतत्वोपनिषद में आठ अंगों का वर्णन है-

  1. यम,
  2. नियम,
  3. आसन,
  4. प्राणायाम,
  5. प्रत्याहार,
  6. धारणा,
  7. ध्यान,
  8. समाधि।

इन सबके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे


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